सवाल-जवाब - क्या खिलाफत के क़याम से पहले उम्मत से शिर्क और बिदअत को दूर करना चाहिये

सवाल-जवाब

सवाल: किसी ने सूरह नूर की आयत का हवाला देते हुए कहा कि यह आयत इस बात को बयान करती है कि उम्मत से पहले शिर्क और बिदअत हटाना चाहिए इससे पहले कि इस्लामी रियासत कायम की जाए। ऐसा किए बिना इस्लामी रियासत क़ायम नही होगी। सूरह 24: 55  मे अल्लाह سبحانه وتعالى ने बयान फरमाया - :

وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا مِنْكُمْ وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَيَسْتَخْلِفَنَّهُمْ فِي الْأَرْضِ كَمَا اسْتَخْلَفَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ وَلَيُمَكِّنَنَّ لَهُمْ دِينَهُمُ الَّذِي ارْتَضَى لَهُمْ وَلَيُبَدِّلَنَّهُمْ مِنْ بَعْدِ خَوْفِهِمْ أَمْنًا يَعْبُدُونَنِي لَا يُشْرِكُونَ بِي شَيْئًا وَمَنْ كَفَرَ بَعْدَ ذَلِكَ فَأُولَئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ

“तुम मे से उन लोगों से जो इमान लाए हैं और नेक अमल किये हैं, अल्लाह तआला वादा फरमा चुका है की उन्हे ज़रूर ज़मीन मे खलीफा बनाऐगा जैसे की उन लोगों को खलीफा बनाया था जो उन से पहले थे और यक़ीनन उन के लिये उन के इस दीन को मज़बूती के साथ मोहकम करके जमा देगा जैसे उन के लिये वोह पसन्द फरमा चुका है, वोह मेरी इबादत करेंगें और मेरे साथ किसी किसी को भी शरीक न ठहराएगें”
मेहरबानी करके इस मसले को वाजेह किजीए:


जवाब: इब्ने काअब ने एक रिवायत मे बयान किया जिसकी तस्दीक तबरानी और अल हाकिम ने सही करार दी कि जब हजरत मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) मदीना आये और अन्सारियो ने उनका और आपके सहाबाओ का इस्तकबाल किया और सारे अरब उनके दुश्‍मन हो गए। सहाबा रात में सोते वक्त भी अपने हथियार तैयार रखते थे और जब वो जागते थे तब भी उनके पास हथियार होते थे, तो उन्होने पूछा ‘‘वो दिन कब आएगा जब हम अमन और शांति के साथ रहेंगे’’ तब अल्लाह (سبحانه وتعالى) ने इस आयत को नाजिल फरमाया।

अलबरा बिन आजिब कहते है: ‘‘यह आयात उस समय नाज़िल हुई जब हम शदीद खौफ की हालत मे थे’’ शेख वहबा अज्‍़जु़हैली अपनी तफ्सीर अल मुनीर में इताअत और उसके समरात (Fruits) का जिक्र करने के बाद कहते है कि जो कोई भी अल्लाह के रसूल की इताअत करेगा वो सीधे रास्ते पर होगा और जन्नत में दाखिल होगा। अल्लाह (سبحانه وتعالى)  ने ईमान वालों से और इताअत गुजा़र मुसलमानों से वादा किया है कि वो उन्हे धरती पर इक्तिदार अता फरमायेगा और वो उन्हे फतह और इज्‍़ज़त देगा ताकि धरती पर उनका दीन गालिब हो जाए और उनके खौफ की हालत को अमन की हालत में बदल देगा ताकि वह अमन की हालत में अल्लाह की इबादत करे और शिर्क न करे और उन्हे किसी का खौफ न हो। उसके बाद वाली आयत में अल्लाह उन्हें हुक्म देता है कि वह सलात और ज़कात कायम करे अल्लाह की मेहरबारियों का शुक्र अदा करे।
वो आगे कहते हैः ''अल्लाह سبحانه وتعالى के इस वादे का पूरा होना दो मसलो पर निर्भर करता है पहला अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान दूसरा अमले सालिहा जो उन्हे अल्लाह के करीब कर देगा और अल्लाह को खुश कर देगा कि वह हज़रत मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) की उम्मत को इस धरती पर खुलफा बना देगा। यानी लोगो का ईमाम (Leader) और उन पर उन्हें इक्तिदार (सत्ता) देगा और इसके ज़रिए से पूरी दुनिया का सुधार होगा। ठीक उसी तरह से जैसे अल्लाह ने दाउद और सुलेमान (अलैह) के ज़रिए किया था और जिस तरह उसने बनी इस्राईल को मिस्र और शाम में जा़लिम हुक्मरानो के खात्मे के बाद इक्तिदार (सत्ता) दी’’
वो आगे कहते है: ‘‘और अल्लाह سبحانه وتعالى के वादे सच्चे है और पूरे होते है और इसी तरह अल्लाह ने मुसलमानों को सत्ता दी और वो पूरे अरब जजी़रे पर गालिब हो गए और उन्होंने मश्‍रिक और मगरिब की ज़मीनो को फतह किया और फारस के हुक्मरानों को खत्म कर दिया और उनके खजा़ने अपने कब्जे में ले लिए और रूमी सल्तनत को फतह कर दिया और उस पर हुकूमत क़ायम की। इस्लामी रियासत आने वाली बाद की खिलाफतो में बहुत ताकतवर रही। खिलाफते राशिदा फिर शाम और अन्दलुस में खिलाफते उमय्या और अब्बासी खिलाफत और उस्मानी खिलाफत यहॉ तक की बीसवी सदी का पहली चौथाई हिस्‍सा (1924) तक जब वह अतातुर्क के हाथो खत्म कर दी गई’’  (खत्म शुद)
ईमाम तबरी अपनी तफ्सीर में बयान करते है कि लोगो में दो बुनियादी खुसूसियत में अल्लाह سبحانه وتعالى और उसके रसूल पर ईमान और अल्लाह और उसके रसूल की इताअत होनी चाहिए। यह उन लोगो की खुसूसियात है जिन्हे अल्लाह तआला ने दुनिया में इक्तिदार (सत्ता) देगा। हांलाकि हम कुफ्र के असरात से उम्मत को हटाने की कोशिश करते है और उसे दीन सिखाते है मगर एक जमात की हैसियत से इस काम को करना नामुमकिन है और इस काम के लिए जिस चीज की ज़रूरत है। वो रियासत है जो रियासती ढांचे (Apparatus) के ज़रीए ही इस मकसद को हासिल कर सकती है। इसलिए यह कहना ग़लत है कि पूरी उम्मत सख्ती के साथ दीन पर चलने वाली होनी चाहिए। न सिर्फ यह गलत है बल्कि यह अमली तौर पर नाक़ाबिले अमल है, गै़र-हकीकी है क्योंकि यह इन्सानी फितरत है कि वो गलती करती है। इसलिए पूरी उम्मत को गुनाहो से पाक कर दिया जाए और सारी उम्मत दीन पर सख्ती से चलने लगे। यह इस काम को करने की सही शर्त नही है।
अगर हम सूरह अनूंर की आयत पर गौ़र करते है: आलिमो का बयान है कि पहले हिस्से में लफ्ज ‘मिनकुम’बयान के लिए है यानी उम्मत से आम खिताब है यानी अल्लाह سبحانه وتعالى उम्मत से आमतौर पर वादा करता है जबकि बाद वाला ‘मिन’ तबईद यानी खास है उन गिरोह के लोगो के लिए जिन्हे इक्तिदार दिया जाएगा। तो इस आयत की शुरूआत में अल्लाह उम्मत से आमतौर पर खिताब करता है कि उम्मत में वो लोग जो अल्लाह पर और उसके रसूल पर ईमान लाएगें और नेक अमल करेंगे (फराईज़ को पूरा करेंगे और मुहर्रमात से दूर रहेंगे) तो अल्लाह سبحانه وتعالى इन लोगो को धरती पर इक्तिदार (सत्ता) अता फरमायगा, तो यह खुसूसियात पहले इस मख्सूस गिरोह मे पाए जाने की उम्मीद की जाती है और बिना इस खुसूसियत के सत्ता पाने की उम्मीद नही की जा सकती।
जहॉ तक वो लोग जो कहते इस उम्मत से पहले शिर्क को हटाया जाए और यह इस्लामी रियासत की वापसी के लिए जरूरी है और हवाले के लिए इस आयत को पेश करते है तो वह लोग ग़लती पर है क्योंकि इस आयत के मुताबिक न तो इसकी ज़रूरत है और किसी भी मुफस्सिरे कुरान ने इस काम के लिए मज़कूरा शर्त लगाई है और न ही यह इस्लामी तरीका है कि बिदअत और शिर्क को दूर करना (गिरोह के जरिए शिर्क और बिदअत को दूर करने की दावत देने का)। उम्मत में मौजूद बिदअत और कई तरह का शिर्क चाहे वो कब्रो की पूजा हो या आस्तानो की पूजा हो इसकी वजह इस्लामी हुकूमत की गै़र-मौजूदगी है। वो शरियत है जिसको रियासत का तालीमी निजा़म (शिक्षा व्यवस्था) और मालुमाती ढांचे के जरिए जब नाफिज़ किया जाएगा तो नादान लोगों को आगह किया जाएगा और उम्मीद है कि इस तरह इससे मुताल्लिक सारे मसले हल हो जाएगे।
जहॉ तक इस बात का ताल्‍लुक है कि वो इन मामलात से चिपके रहना चाहेंगे तो शरिअत अपने साथ सजा़ओ की भी व्यवस्था रखती है ताकि वो उन्हे इन आमाल से रोक सके। इससे मालूम हुआ कि वो इस्लामी रियासत है जो असरदार अंदाज मे इस मसले को हल करेगी और दूसरे मसलो को जिसका उम्मत सामना कर रही है। उम्मीद है कि यह मसला वाज़ेह हो गया, बारकल्लाह।
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